
उधार दिया पैसा जब समय पर वापस नहीं मिलता, तो यह न सिर्फ वित्तीय परेशानी का कारण बनता है बल्कि मानसिक तनाव भी बढ़ा देता है। भारत जैसे देश में जहां आपसी भरोसे पर लेन-देन आम बात है, वहीं जब पैसा लौटाने की बात आती है तो कई बार लोग जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेते हैं। ऐसे में कानून आपके साथ खड़ा होता है और उधार की राशि को कानूनी रूप से वापस पाने के कई सशक्त तरीके उपलब्ध हैं। चाहे आपने बिना किसी दस्तावेज के उधार दिया हो या बैंक ट्रांजैक्शन के माध्यम से, आपके पास अपना पैसा वसूलने के पूरे अधिकार हैं—जरूरत है तो बस उन्हें सही तरीके से लागू करने की।
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उधारी के लिए दस्तावेज़ी सबूत ज़रूरी क्यों हैं?
कानूनी प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण होता है लेन-देन का प्रमाण। यदि आपने पैसा केवल मौखिक रूप से उधार दिया है, तो यह साबित करना मुश्किल हो सकता है कि सामने वाले ने पैसा लिया भी था या नहीं। इसलिए पैसा देते समय हमेशा एक एग्रीमेंट या रसीद तैयार करें, जिसमें तारीख, राशि और लौटाने की शर्तें स्पष्ट रूप से लिखी हों। डिजिटल ट्रांजैक्शन, जैसे NEFT, UPI या बैंक ट्रांसफर, आपके केस को मजबूत बनाते हैं और कोर्ट में साक्ष्य की तरह मान्य होते हैं। यह प्रक्रिया न केवल आपको सुरक्षित रखती है बल्कि सामने वाले को भी जिम्मेदार बनाती है।
कानूनी नोटिस भेजना
यदि बार-बार कहने पर भी उधार लेने वाला पैसा नहीं लौटा रहा है, तो कानूनी नोटिस भेजना एक प्रभावी तरीका है। यह नोटिस किसी वकील के माध्यम से भेजा जाता है और इसमें पूरी डिटेल दी जाती है—जैसे उधार की राशि, तारीख, और किस आधार पर पैसा लिया गया था। नोटिस में यह भी उल्लेख होता है कि यदि निर्धारित समयसीमा (आमतौर पर 15 से 30 दिन) में भुगतान नहीं किया गया, तो कानून के तहत अगली कार्रवाई की जाएगी। यह कदम कई बार सामने वाले को चेतावनी देने और भुगतान के लिए मजबूर करने में कारगर साबित होता है।
मनी रिकवरी सूट
यदि कानूनी नोटिस का असर नहीं होता, तो अगला रास्ता होता है मनी रिकवरी सूट। इसे आप सिविल कोर्ट में दायर कर सकते हैं, विशेष रूप से CPC के ऑर्डर 37 के तहत, जिसे ‘सारांश वाद’ कहा जाता है। इसमें अदालत जल्दी फैसला देती है क्योंकि यह सामान्य केसों से अलग होता है। अगर आपके पास पर्याप्त सबूत हैं—जैसे बैंक रिकॉर्ड, चैट, या किसी प्रकार का एग्रीमेंट—तो कोर्ट आपके पक्ष में निर्णय दे सकती है और सामने वाले को भुगतान के लिए बाध्य किया जा सकता है। इसमें कोर्ट फीस राशि के अनुसार होती है, जो रकम की सीमा पर निर्भर करती है।
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चेक बाउंस हो गया तो ये है अपराध
अगर आपने सामने वाले से चेक लिया था और वो बाउंस हो गया, तो यह निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध है। ऐसे मामलों में पहले कानूनी नोटिस देना होता है और यदि 15 दिनों में भुगतान नहीं होता, तो आप अदालत में आपराधिक शिकायत दर्ज कर सकते हैं। इस धारा के तहत दोषी को दो साल तक की सजा और रकम का दोगुना जुर्माना भी लग सकता है। चेक बाउंस केस तेज़ गति से चलते हैं और सामने वाले पर दबाव डालने में काफी असरदार माने जाते हैं।
धोखाधड़ी का केस
यदि आपको लगता है कि सामने वाला जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से पैसा नहीं लौटा रहा है, तो आप भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (अब भारत दंड संहिता-BNS की धारा 318) के तहत धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर सकते हैं। यह मामला आपराधिक श्रेणी में आता है और इसमें पुलिस द्वारा जांच की जाती है। यदि मामला साबित होता है, तो दोषी को जेल की सजा और आर्थिक दंड दोनों हो सकते हैं। हालांकि, यह रास्ता तब अपनाएं जब आपके पास पुख्ता सबूत हों और स्थिति गंभीर हो।
समयसीमा और कानूनी दायरे की जानकारी
कानून के अनुसार, उधार दिए गए पैसे की वसूली के लिए सिविल कोर्ट में दावा तीन साल के भीतर ही किया जा सकता है। इसे लिमिटेशन एक्ट के तहत देखा जाता है। यदि आपने इस अवधि में कोई कार्रवाई नहीं की, तो कोर्ट में आपका दावा स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसलिए देर करने से पहले अपने कानूनी विकल्पों को समझना और उन्हें लागू करना बहुत जरूरी है। समय पर उठाया गया कदम आपकी रकम को सुरक्षित कर सकता है।
समझौता और मध्यस्थता
हर मामला कोर्ट तक पहुंचे, यह जरूरी नहीं। कई बार आपसी समझौते और मध्यस्थता के जरिए भी समाधान निकाला जा सकता है। इसके लिए आप लिखित रूप में एक नया एग्रीमेंट कर सकते हैं, जिसमें सामने वाला किस्तों में या एक तय समयसीमा में पैसा लौटाने का वादा करता है। अगर यह समझौता गवाहों के सामने और किसी वकील की मौजूदगी में हो, तो यह कानूनी रूप से बाध्यकारी होता है। यह तरीका सस्ता, तेज़ और बिना तनाव वाला हो सकता है।
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