
हाल ही में एक बेहद अहम निर्णय में, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि केवल लंबे समय से किसी ज़मीन पर कब्जा रहने से व्यक्ति उस ज़मीन का कानूनी मालिक नहीं बन सकता। इस फैसले में एक ऐसे मामले की सुनवाई हुई जिसमें दावेदारों का कहना था कि वे पिछले 100 सालों से एक ज़मीन पर कब्जा किए हुए हैं, इसलिए अब उन्हें उस पर मालिकाना हक़ मिल जाना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने यह तर्क खारिज कर दिया।
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लंबे समय से कब्जा और मालिकाना हक़
भारत के भूमि क़ानूनों के अनुसार, सिर्फ लंबे समय से कब्जा कर लेने भर से कोई ज़मीन कानूनी रूप से आपकी नहीं हो जाती। भले ही कब्जा 50 साल पुराना हो या 100 साल, जब तक उस कब्जे का वैध दस्तावेज़ या अधिकारिक ट्रांसफर नहीं हुआ हो, तब तक उसे मालिकाना हक़ नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केवल “लंबे समय से उपयोग में होने का दावा” पर्याप्त नहीं है।
कोर्ट के फैसले का व्यापक प्रभाव
इस ऐतिहासिक फैसले का प्रभाव पूरे देश में उन मामलों पर पड़ेगा जहां लोग केवल कब्जे के आधार पर ज़मीन पर मालिकाना हक़ जताते रहे हैं। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि ज़मीन की वैध रजिस्ट्री, दस्तावेज़ और सरकारी रिकॉर्ड ही किसी व्यक्ति को कानूनी मालिक बनाते हैं। ऐसे में अब वे सभी लोग जो बिना दस्तावेज़ के ज़मीन का दावा कर रहे थे, उन्हें कड़ी कानूनी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
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100 साल पुराना मामला और कोर्ट की समीक्षा
इस केस में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उनके पूर्वज 100 साल से अधिक समय से एक कृषि ज़मीन पर खेती कर रहे हैं, इसलिए अब यह ज़मीन उनकी मानी जाए। लेकिन अदालत ने राजस्व रिकॉर्ड, भूमि के स्वामित्व दस्तावेज़ और स्थानीय निकायों के अभिलेखों की जांच करने के बाद यह पाया कि कोई वैध ट्रांसफर या स्वीकृति उस परिवार के नाम पर नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि भले ही कब्जा पुराना हो, लेकिन यदि वह गैरकानूनी है तो मालिकाना हक़ नहीं मिल सकता।
कब मिलता है कानूनी कब्जे का अधिकार
यदि किसी व्यक्ति को ज़मीन सरकार से पट्टे पर मिली हो, या न्यायिक रूप से किसी ट्रस्ट, परिवार या संस्था से ट्रांसफर हुई हो, और उसके दस्तावेज़ मौजूद हों, तो ही उस पर वैध अधिकार माना जाता है। केवल मौखिक दावे, परंपरागत कब्जा या वर्षों की उपस्थिति इस अधिकार का कानूनी आधार नहीं बनाते। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राजस्व रिकॉर्ड में किसी का नाम होना मात्र स्वामित्व का प्रमाण नहीं होता जब तक कि वह वैध प्रक्रिया से दर्ज न हो।
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